
कहा जाता है कि समय से पहले और नसीब से ज्यादा कभी किसी को नहीं मिलता, इसी को अपने जीवन की सीढी बनाकर मैंने जब चलना शुरू किया ,फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा माता पिता के गुजर जाने के बाद ,जिन्दगी और अपने सपने ही मानो बेईमानी से नजर आने लगे, मुझे ओरो की तरह सजने सवरने का शौक नहीं था सिर्फ एक चीज का शोक था पढाई का ,वो भी दिल से मजबूरी से नहीं ,अब वो भी न रहा ,वजह थी सगी मौसी जो एक मात्र जिंदा रिश्तेदार थी मेरे मौसी के यहॉं आने के बाद से ही चारों ओर से खा जाने वाली नजरों को सामना किया वे नजरें जब भी मुझे देखती ,मैं अपने को निर्वस्त्र समझने पर मजबूर हो जाती ,क्योंकि वो नजरें मौसी के साथ अनैतिक कार्य करने वालों की होती ,मैं उनके दिल बहलाने का खिलौना मात्र थी ,जिसे मौसी ने एक आसामी को मोटी रकम ले मुझे थमा दिया मेरी जिंदगी में ये पहला मौका था जब किसी गैर के साथ रूम में थी
उस अधेड़ उम्र के शख्श ( प्रकाश जी ) ने नजदीक आकर एक सवाल किया ‘’ क्या तुम हमारे बीच बनने जा रहे संबध के लिए राजी हो ? ’’ उस वक्त मैं उनसे नजरें झुकाकर सिर हिलाते हुए केवल नहीं कह पाई और खामोशी को ही अपनी जुबा बना लिया तब उस व्यक्ति ने मेरे चहरे को अपनी ओर घुमाकर ऑखों में ऑंखे डालते हुए मुझे कहॉं तुम्हारी कोई ख्वाहिश है अगर हो तो मुझे बताओ मैं उसे जरूर पूरा करूगॉं अपनी जिंदगी में कई उतार चढाव के बाद इस अवसर को गवाना मुझे मजूर न था लिहाजा इसे अंतिम अवसर मान मैंने कहा मैं पढाई करना चाहती हॅू बदले में आप जो कहोंगें वह मैं करने को तैयार हूँ इस बात का वादा करती हूँ मेरी बातें सुनकर वह कुछ पल खामोश रहने के बाद बोले ठीक है लेकिन एक वादा करना होगा तुम्हें शादी कर मेरे घर चलना होगा ,तब तक तुम्हारी सारी जिम्मेदारी मेरी हैं ,
तब शुरू हुआ पढाई का पहला पड़ाव जिसमें 12 क्लास में जिले में टाँप रैकिगं फिर सेकेड पड़ाव बीए फाइनल ,तीसरे पड़ाव लॉं करने की इजाजद मांगी जिसे प्रकाशजी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया ,उसी दौरान न्यूज पेपर में जिंदगी का चौथा पड़ाव आई. ए. एस. के रूप में नजर आया ,लेकिन इस बार मैंने प्रकाशजी से आई. ए. एस. कम्पीटिशन एग्जाम की अनुमति न लेकर स्वयं ही फार्म सबमिट करने पहुँच गई वहॉं मेरी मदद एक अनजान युवक सूरज ने कि सूरज ने मुझे नोट्स दिये बल्कि एग्जाम के दौरान मदद भी की उस दौरान वो मेरे लिये फरिस्ते से कम न था ,एग्जाम के बाद मैंने उसे धन्यवाद दिया।
कुछ दिन बाद मेरा मन ही मुझे कचौटने लगा लिहाजा प्रकाशजी के घर आने पर मैंने उन्हें सब कुछ कह सुनाया इस पर वह बोले क्या तुम्हें मुझसे किया वादा आज भी याद हैं ? तब नजरें झुकाये मैंने पूरे आत्मविश्वास से कहॉं जी हॉं मुझे याद हैं और मैं उसे निभाने को तैयार हॅूं क्योंकि आपसे पूछे बिना मैने आई. ए. एस. का एग्जाम दिया इस पर प्रकाशजी ने अपने फोन पर पहले किसी से मुस्कुराते हुए बाते कि फिर मेरी नजरों से नजरे मिलाकर कहॉं ठीक है शादी की तैयारी करो हम शादी कर तुम्हें अपने घर लेकर जायेगें ।
आई. ए. एस. के रिजल्ट की तारिख गुजर जाने के बाद भी जानने की कोई हसरत भी न रही, ये सोचते हुए मै शादी के मण्डप में आ बैठी सोचा मौसी के यहॉं हर रोज नया शख्स मुझे नोचता इससे बेहतर होगा प्रकाशजी के साथ पत्नि को दर्जा पाकर रहॅू विदाई के वक्त अपने ठीक सामने प्रकाश जी देख मैं पूरी तरह हैरान रह गई ,क्योकि मेरे पति अभी भी मेरे साथ थे नजदीक आकर उन्होंने मुझसे कहॉं आरती ये मेरी ओर से तुम्हारे लिए मैं शादी कर तुम्हे अपने सगं ले जा रहा हूँ अपनी बहू बनाकर एक नये जीवन की शुरूआत के उद्देश्य के साथ ।
प्रकाश जी के बड़प्पन की ये एक ओर मिशाल थी तभी मेरी नजरें उस लिफाफे पर पड़ी जो प्रकाशजी ने दिया था ,उसे खोलने पर पाया वो आई. ए. एस. भर्ती का कॉंल लेटर था लेकिन पास सेहरा बॉधे खड़े मेरे पति जिनसे मैं अबतक अनजान थी एक दफा पूछना मुनासिब समझा क्या आप मुझे आई. ए. एस. की जॉब करने की अनुमति देगें ये रहा कॉंल लेटर ! अपने दोनों हाथों को मेरे कन्धे पर रख अपना सेहरा हटाकर कहॉं जब साथ जाकर फार्म सबमिट करवा सकता हूं तो क्या जॉब की अनुमति नही दूँगा मैं तुम्हारे साथ हॅू ।
उनके यह शब्द सुनकर हैरान होकर अपनी नजरे जैसे ही चेहरे पर पड़ी मेरी खुशी का ठिकाना न रहा वो सूरज थे उन्हें अपने पति के रूप में पाकर मुझे बेहद खुशी हुई उस पर प्रकाशजी ने नजदीक आकर सभी के समक्ष जारेदार ठहाके के साथ कहॉं ये हमारी बहू है आई.ए.एस. बहू , ये सुनकर दिल में ख्याल आया समय से पहले और नसीब से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता लेकिन कीचड़ में खिले कमल को भारत माता के कदमों तक पहुचाने की हिम्मत हर कोई नहीं विरले ही करते हैं जो इस समाज के कीचड़ को साफ कर अपने घर को सजाने का साहस करें ।
‘’ कीचड़ में कमल खिलते है लेकिन हर जगह नहीं क्योंकि उस कमल के ये हौसले होना चाहिए अपनी जगह के विपरीत खिलने का दम और हौसला होना चाहिए मुश्किलों को सामना घबराकर नहीं डटकर करना ही मंजिल की ओर बढाया पहला कदम होता है ‘’