अपने ऑफिस की कुर्सी पर बैठे रोहित सर उगलियों में पेन फंसा कर घुमाते हुए ,गहरी सोच की मुद्रा में मग्न है, वजह है ऑफिस की दो दिन की छुट्टी और फिर छुट्टी बाद विकेशन ,छुटि्टयों का सही उपयोंग कहा किस तरह किया जाये, ऊपर से कड़कड़ाती ठण्ड सो अलग ,तभी टेबल पर रखे ढेरों इन्वीटेशन पर आकर नजरें अनायास ही थम सी जाती है, हाथ आगे बढा़कर का कार्ड उठाने पर मन में ना कोई शंका न सवाल शेष रहता है, क्योंकि जवाब अब जो हाथ हैं, इन छुटिट्यों का उपयोग करने अपनी पत्नि बैदही सगं पैत्रक गॉव आकर काका श्री से उनके परिवार से स्नेहपूर्वक भेट के साथ…
आओं बेटा मैंने सोचा इस बार अपने भाई की शादी में तुम्हें कुछ वक्त मिले न मिले ,क्योंकि शहरी जिन्दगी मिनटों पर चलतेी है ,सच कहॉं न मुस्कुराते हुए काकाजी ने कहॉं –‘’हर बार ऐसा नहीं होता ,वैदही हर बार शिकायत करती है, यहॉं आने की, और इस बार मौका अच्छा था, अपने पूरें परिवार संग कुछ वक्त गुजार सकॅू , इसी वजह से हम चले आये ,अब मेरे लायक कोई काम हो तो कहो – अपने भाई की शादी में फर्क निशाने के लिहाज से रोहित जी !
‘’ अरे आज आराम करो,वैसे भी सिर्फ दो हजार लोगों की रसोई का प्रोगाम है ,यू ही तैयारी हो जायेगी सब आते होगें कहकर पीठ पर स्नेह भरा हाथ रखकर काकाजी…
‘’आराम तो बाद में कर लूँगा ,फिलहाल तो तैयारी करना है ,अपने भाई की शादी में काकाजी के साथ ही होकर उनके कामों में मदद करते हुए रोहित ! ‘’ चलो ठीक है रूकों हलवाई व हमारे महाराज भी आ चुके है, उन्हें समझा दे ,फिर काम आगे बढायेगे अपने काम करेंगें और महाराज (प्रमुख रसोईये) अपना काम दोनों वही रूक अपने नजदीक आ रहे महाराज से चर्चा करने रूकते हुए …
‘’ हॉ महाराजजी अब ये सारे प्रोगाम में खाने की जवाबदारी सिर्फ आपकी ही सब समझना होगा ठीक समझाकर अपने खीसे से भण्डार गह्र की चाबी थमाकर महाराज !
‘’ ये आपका बड़प्पन हैं ,वैसे भोजन व्यवस्था कितने लोगों के लिहाज से करना है, पूछते हुए चॉंबी थामकर महाराज ‘’ ये ही कोई दो हजार लोग आयेगें ,तुम लगभग ढाई हजार के लिहाज से देख लो , खाना बचे कोई परवाह नहीं लेकिन कम नहीं पड़ना चाहिए अपनी मुछों पर ताव देकर काकाजी महाराज पर अपना रौब झाड़कर ..
लेकिन काकाश्री आप तो कह रहे थे ,सिर्फ दो हजार लोगों का भोजन बनेगा, फिर अपने महाराजी को ढाई हजार का क्यों कहॉं आजकल चरी प्रथा ( खाने से पहले गंगा जल लेकर पत्तलों में खाना न छोड़ने का प्रण लेने की प्रथा ) बंद कर दी क्या ? मुस्कुराकर पूछते हुए रेहितजी !
‘’ नहीं यार ये बात नहीं,मैंने कहॉं न खाना कम नहीं पड़ना चाहिए बच जाये तो चलेगा फिर वही बातें कर आगे बढतें हुए काकाजी ‘’उस दिन मन में ये विचार को बल मिला क्यों आज शहर का व्यक्ति बु्ध्दिमान ओर गॉंव का बैवकुफी भरे फैसले लेता है ,जहॉं दो हजार की व्यवस्था करना है, वहॉं ढाई हजार व्यक्त्यिों के भोजन की व्यवस्था की जा रही हैं, अपनी मजबूरी विरोध न कर पाने की वजह से खामोश रहकर प्रोगाम का हिस्सा बना ,लोग आये खाना खाया गॉंव में चरी व्यवस्था (प्रथा) देखकर दिल को सुकुन मिला कोई अपनी पत्तालों में झूठा नहीं छोड़ता ,इससे भोजन का कोई व्यर्थ नुकसान नहीं हो पाता ,लेकिन गॉंव में एक शादी और होने से काकाश्री के यहॉ शादी में आये तो दो हजार लेकिन खाना खाया मात्र पन्द्राह सौ लोगों ने ही किया। अब देर रात काकाश्री से अकेले में बोलना मैंने अपना फर्ज समझा!
‘’ काकाश्री मैने आपसे पहले ही कहा था अपना परिवार इतना बड़ा नहीं हैं जितनी भोजन व्यवस्था आपने की है, आपको खाना कम बनवाना था ,सोने जाने से पूर्व मन की भड़ास निकालते रोहित जी .. अब काकाश्री रोहित जी की किसी बात का जवाब नहीं देते वो वहॉं से जाने में ही अपनी बेहतरी समझतें हैं, क्योंकि कुछ सवालों के जवाब समय पर छोड़ देना चाहिए ,सुबह छ: बजते ही अंधेरे में एक कार्गो के आते ही रोहितजी उठकर बैठ जाते है, क्योंकि उनकी नींद एक आवाज में खुल जाती’’ चल तुझे गॉंव घुमाकर लाता हॅू वैन में बचाकुचा खाना भरकर चले काकाश्री
ये सब गॉंव में बॉटने निकले हो इतनी सुबह-सुबह क्यों काकाश्री वैन में बैठै रोहित जी अपने काकाश्री से ..
अपना एक परिवार और है बस वही चल रहे है, जायेगें और जल्दी लौट आयेगें वैन में सुकुन से बैठते हुए काकाश्री लेकिन ये परिवार है कितना बड़़ा और कहॉं पर मौजूद है जिज्ञासावंश रोहित जी यही पास में ही हैं बस आता ही होगा जबाव देकर काकाश्री !
‘’ चलो उतारों आ गया मुकाम. उतरों वैन से उतरकर मेरी नजर एक बड़ी सी बिल्डिगं पर लगे होडिग्स पर जा थमी ,जिस पर लिखा था वही नारी निकेतन केन्द्र एंवम व्रध्दश्राम
तो ये एक और परिवार है आपका क्यों काकाश्री पूछते रोहित जी !
हॉ एक परिवार ये है ,क्योंकि ये लोग उम्र दराज है ,ज्यादा सफर नहीं करते और इन्हे परिवार का सहयोग नहीं है, परिवार भी इनसे दूर रहने में अपनी शान समझता है, आज ये सन्तुष्ट होकर दुआ देंगें ,तो मेरे बेटे के जीवन में खुशिया आयेगी काकाश्री !
काकाश्री की बातें जानकर मन खुद को भीतर ही भीतर कचोटने लगा ,मैं कितना गलत हूँ उन्हें सारी रात कोसता रहा, भला-बुरा कहता रहा लेकिन उन्होंने वो समाज से जुड़े समाज को लेकर चलने वाले एक नेक दिल इंसान जो सभी को एक बराबर समझते है और समाज की बेहतरी के लिये सदैव तत्पर रहकर प्रयास करते हैं, मैं आज उन्हें उनके नेक काम के लिये सलाम करता हॅू