गॉव के तालाब में बच्चों को आपस में होड़ करते देख ख्याल आया क्या इनमें से किसी का पत्थर कभी इस तालाब को पार कर पायेगा ,शायद नहीं किसी का छ: तो किसी का पत्थर आठ ठप्पों तक ही सीमित होकर तालाब की गहराई में गुम हो जाता हैं ,लेकिन मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं होगा इसमें कोई शक नहीं हैं ये गॉव लड़को का हैं ,इस गॉंव में अपनी पहचान बनाना मेरे लिये मुश्किल हैं नामुमकिन नहीं, ये सोच तालाब किनारे चलते-2 घर पहुचीं।
इस बार रक्षा बंधन की वजह से मामा घर दो दिन पहले आये,उनकी हर बार मुझे अपने संग ले जाने की जिद इस बार मेरी भी चाहत बनी और मैं मॉं को समझाकर पापा की मर्जी के खिलाफ उस दिशा में चल दी जहॉं मेरी मंजिल अब भी दूर थी गॉव की परवरिश में पली बड़ी वही के ख्यालो को अपनी सीमा मानते वाली मैंने जब शहर का परिवेश देखा तो मैं हैरान रह गई यहॉं पर सभी लड़के-लड़किया को घुमने फिरने अपने फैसले लेने के साथ ही पूरी स्वतंत्रता थी ये सोचकर दिल में सिर्फ एक ख्याल आया काश कि ऐसा परिवेश और स्वतंत्रता वहॉं भी होती खैर छोड़ो !
अपने मन को मसासकर (मारकर) मैं मामा संग घर को लौट आई, शहर की सारी बाते, मैंने मॉ-पापा को कह सुनाई इसे सुनकर उन्होंने नाराज होकर मुझसे गुस्से में बोला – खुशी क्या तुम गॉंव हालात यहॉं की प्रथा रिवाज से वाकिफ नहीं ,गॉव है शहर नहीं । यही वो वजह थी तुझे शहर न भेजने की ध्यान से सुन आज के बाद घर के बाहर कदम रखा तो पैर तोड़ दूगा मैं तेरे ‘’
इस बार पिताजी को गुस्से में देख अपनी चाहत छुपाना व्यर्थ था मैं उनसे न कहॅू तो किसे कहूं ये सोचकर मैंने कहा पापा मैं पढाई करना चाहती हॅू शहर जाकर मैंने देखा वहॉं सभी को पढाई करने की आजादी हैं वे अपनी जिंदगी के फैसले स्वयं ले सकते हैं ,हमारे भी गॉंव में स्कूल हैं ये सुन उन्होंने एक दफा फिर कहा मैं तुझे इस गाँव में जब तक पढा सकता था पढाया आगे पढा़कर समाज बिरादरी को क्या मुहॅं दिखऊगा ये सुन गावँवाले दिन रात ताने मारेगे सो अलग ‘’
तभी मामा ने हमारे बीच आकर कहा जीजा तुम समाज की चिंता क्यों करते हो आज इसका मन है आप पढाओं जबावदारी में लेता हूँ मामा की बातें सुन पिताजी का गुस्सा जरूर कम हुआ, लेकिन ईरादा वही रहा जो था, वो बोले नहीं मैं इसे वहॉं नहीं पढा सकता और रही बात यहाँ कि तो मैं कह चुका हॅूं घर से कदम बाहर न करना वर्ना बताने की जरूरत नहीं ,इस घर के भीतर तुझे जो करना है,वो कर मैं तुझे नहीं रोकुगॉं समझी ‘’
इतना कहकर पिताजी के बाहर जाते ही मामा ने पास आकर के मेरी बुझी आशा को फिर रोशन कर दिया यह कहते हुए आज में तुझसे यही घर के भीतर पढाई करवाने को वादा करता हूँ तुझे अपने सपने पूरे करने का हक हैं जिसे तुझसे कोई नहीं छीन सकता ,ये मेरा वादा है तुझसे चल अब करते हैं तैयारी पढाई की ‘’ मामा के सहयोग से मैंने आनलाईन पढाई कर 12th क्लास पास की फिर पी.एम.टी के एग्जाम में टॉप टेन में जगह बनाई ये देख गॉंव की बंदिशो को तोड़ तमाम उसूलो प्रथाओं को ताक पर रखते हुए आखिर पिताजी ने अपना ईरादा छोड़ मुझे मामा संग जाने की ईजाजद दी ।
शहर आकर दिन रात अपनी पढाई करने के बाद आखिर पूरे पॉंच वर्षो बाद जब में अपने गॉंव लौटी तो गॉंव के हालात जस के तस थे उनमें जरा भी बदलाव नजर न आया, वही प्रथा रोक रूकावटे थी लड़कियों पर गॉंव में कार रूकते ही कार के चारों ओर सारे गॉंव की भीड़ एकत्रित हो गई आज गावँवाले के लिये ये कोतूहल का विषय था एकमात्र वो मैं थी जो इस गॉव ही होकर भी इतनी पढी लिखी सफेद फुल कोट पहने जिसे मेडिकल की भाषा में ऐप्रिन कहा जाता हैं वहॉं मौजूद सभी की नजरे मुझे देखकर चमक उठी अपने सामने खुशी को देखकर सभी की आशा भरी नजरें मुझे देख रही थी उन्हें देख मैं हैरान रह गई तभी एक युवती पास आकर मुझसे बोली दीदी आपने डॉक्टर बनकर हमारी उम्मीदों को जीवन दिया ,इस गॉंव के लिए आपने एक मिशाल पेश की आपने बदलने का प्रयास किया अब देखना इस गॉंव की तस्वीर बदलेगी ये मेरा विश्वास नहीं आत्मविश्वास हैं ‘’
युवती के मुझसे दूर होते ही अपने पिताजी को देखकर आज पहली दफा मेरी पलके नम थी उनकी मर्जी के खिलाफ जाने के बावजूद कभी न मुस्कुराने वाले होठों पर आज सिर्फ अपनी बेंटी के लिए मुस्कान थी और उन्हीं होठो पर ये शब्द थे खुशी आज तुम्हारा पत्थर छ: आठ टप्पे खाने के बजाये तालाब के पार गया हैं बेटा तुने अपनी पहचान बनाकर इस बात को साबित कर दिया कि प्रयास करने वालों के लिये मंजिल मुश्किल भरी हो सकती हैं ,लेकिन नामुमकिन नहीं तुने साबित किया हैं ‘’ खुशी ने जो पहल की है उसे मैं आगे बढाऊगा ये वादा करता हूँ मुस्कुराकर संरपच ने कहा ।
‘’ सफलता की राह में रूकावटें वही से आरम्भ होती है जहॉं से सफर आसान नजर आता हैं शायद यही वजह है संघर्ष किये बिना सफलता हासिल नहीं होती जो सफलता बिना संघर्ष हासिल हो वो स्थाई नहीं होती ‘’