बदनाम है हम फिर भी पूछता है हर कोई,
जिस गली से लोग गुजरना नहीं चाहते, उसी गली में शरीफ बन आता-जाता है हर कोई,
तुम जो कहते थे कि दाग है हम समाज पर,
वही तुम्हारे सामज से आकर हम पर मुँह मारता है हर कोई,
वो लोग जो कहते है कि हम दो कौड़ी के बाजारू औरते है-2,
पर खुले आम मुँह मांगा भाव लगाता है हर कोई,
जिस शराफत की बात करते है, वे लोग,
असल मे अपनी शराफत उन बदनाम गलियों में भूल आता है हर कोई,
एक जमाने में खूबसूरती का कोई मोल नहीं लगता था,
पर आज नूर-ए-जिस्म खरीदता और बेचता है, हर कोई,
जब तक चाह थी, तब तक उस गली में आना जाना और जरूरत- ए-इश्क़ लड़ाना था,
जब हम जहाँन से रुखसत हो गयी, तो हमारे जनाजे से गुजर जाता है हर कोई,
हवस कहे या हवानियत, पर इसे शांत करने की शायद यही है, इंसानियत,
और चरित्र साया हरण होने के बाद उन्हें भूल जाता है हर कोई,
बदनाम है हम फिर भी पूछता है हर कोई!
रोहित मौर्य(मुसाफ़िर)…
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