जाड़े के दिन आये हैं,
संग अपने ठंड लाये हैं;
घर-घर निकली कंबल-रज़ाई,
सर्द हवाओं ने बर्फ जमायी;
आकाश ने ओस गिराये हैं,
जाड़े के दिन आये हैं ।
चारों ओर है छाया कोहरा,
धूप में मिलता है चैन थोड़ा;
गर्म कपड़े पहन रहे सभी,
आग जला सेंक रहे सभी;
अंग-अंग कप-कपाये हैं,
जाड़े के दिन आये हैं।
दवाखानों में लगी कतार,
किसी को सर्दी तो किसी को बुखार;
कान-मुँह ढँक रहे सभी,
शीत लहर से बच रहे सभी;
हाथ-पांव जम आये हैं,
जाड़े के दिन आये हैं।
© Copyright महर्षि दुबे – होशंगाबाद, मध्य प्रदेश
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