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जाड़े के दिन – हिन्दी कविता

जाड़े के दिन आये हैं,
संग अपने ठंड लाये हैं;

घर-घर निकली कंबल-रज़ाई,
सर्द हवाओं ने बर्फ जमायी;

आकाश ने ओस गिराये हैं,
जाड़े के दिन आये हैं ।

चारों ओर है छाया कोहरा,
धूप में मिलता है चैन थोड़ा;

गर्म कपड़े पहन रहे सभी,
आग जला सेंक रहे सभी;

अंग-अंग कप-कपाये हैं,
जाड़े के दिन आये हैं।

दवाखानों में लगी कतार,
किसी को सर्दी तो किसी को बुखार;

कान-मुँह ढँक रहे सभी,
शीत लहर से बच रहे सभी;

हाथ-पांव जम आये हैं,
जाड़े के दिन आये हैं।

© Copyright महर्षि दुबेहोशंगाबाद, मध्य प्रदेश Maharshi-Dubey

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