नाज़ है वतन को शहीदों पर

लगा मौत को गले नयी जो इब़ारत लिख गये,
हो वतन पे कुर्बां दे शहादत मिट गये,
नाज़ है एह़ले वतन को उन शहीदों पर,
वतनपरस्ती की दास्तां जो अपने खूं से लिख गये ।

चिराग़ बुझा अपना रौशन जो वतन कर गये,
उजाड़़ जहां अपना गुलशने चमन कर गये,
नाज़ है एह़ले वतन को उन शहीदों पर,
ख़ातिर वतन हर अरमां जो दफ़न कर गये ।

वतने मोहब्बत में जो ये करम कर गये,
आखिरी सांस तक नामे वतन कर गये,
नाज़ है एह़ले वतन को उन शहीदों पर,
वतने अज़ीज़ पे मर तिरंगा जो कफ़न कर गये ।

© Copyright महर्षि दुबे – होशंगाबाद, मध्य प्रदेश

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